सबसे ख़ास बात
लेखक: मिखाईल
ज़ोशेन्का
अनुवाद : आ.
चारुमति रामदास
इस दुनिया में अन्द्र्यूशा रीझेन्की नाम
का एक लड़का रहता था. वह बड़ा डरपोक था. वह हर चीज़ से डरता था. वह कुत्तों से डरता
था, गायों से डरता था, बत्तखों से, चूहों से, मकड़ियों से और यहाँ तक कि मुर्गों से
भी डरता था. मगर सबसे ज़्यादा वह दूसरे बच्चों से डरता था. और इस बच्चे की माँ बहुत
बहुत दुखी रहती थी कि उसका बेटा इतना डरपोक है.
एक ख़ूबसूरत सुबह इस बच्चे की माँ ने उससे
कहा, “आह, कितनी बुरी बात है कि तू हर चीज़ से डरता है! इस दुनिया में सिर्फ़ बहादुर
लोग ही अच्छी तरह जीते हैं. सिर्फ़ वे ही दुश्मनों को हराते हैं, आग बुझाते हैं और
साहस से हवाई जहाज़ों में उड़ते हैं. इसलिए बहादुर लोगों को सभी प्यार करते हैं. और
सब उनकी इज़्ज़त करते हैं और उन्हें इनाम और मेडल्स देते हैं. मगर डरपोक लोगों को
कोई प्यार नहीं करता. उन पर हँसते हैं और उनका मज़ाक उड़ाते हैं. इस वजह से उनकी
ज़िन्दगी बहुत ख़राब हो जाती है, बोरिंग हो जाती है, और बिल्कुल दिलचस्प नहीं होती.
अन्द्र्यूशा ने अपनी माँ को जवाब दिया:
“मम्मा, अब से मैंने बहादुर आदमी बनने का
फ़ैसला कर लिया है. और इतना कहकर अन्द्र्यूशा आँगन में घूमने चला गया. आँगन में
बच्चे फुटबॉल खेल रहे थे. ये बच्चे, हमेशा की तरह, अन्द्र्यूशा को चिढ़ाने लगे. वह
तो उनसे यूँ डरता था, जैसे वे आग हों. हमेशा उनसे दूर भागता था. मगर आज वह भागा
नहीं. वह चिल्लाकर उनसे बोला, “ऐ तुम, लड़कों! आज मैं तुमसे नहीं डरूँगा! “ बच्चों
को बड़ा अचरज हुआ, कि अन्द्र्यूशा इतने साहस से चिल्ला रहा है. वे कुछ डर भी गए. और
उनमें से एक – सान्का पालोच्किन- कहने लगा,
“आज
अन्द्र्यूश्का रीझेन्की हमारे ख़िलाफ़ कुछ सोचकर आया है. चलो, बेहतर है कि यहाँ से
चले जाएँ, वर्ना वह हमें मारेगा. मगर लड़के गए नहीं. उनमें से एक ने अन्द्र्यूशा की
नाक पकड़ कर खींची. दूसरे ने उसके सिर से क़ैप खींच कर गिरा दी. तीसरे ने
अन्द्र्यूशा को मुक्का मारा. मतलब – उन्होंने अन्द्र्यूशा को थोड़ा बहुत मारा, और
वह रोते हुए घर पहुँचा. और घर में, आँसू पोंछते हुए, मम्मा से बोला, “मम्मा आज तो
मैं बहादुर बना था, मगर इससे तो कुछ भी अच्छा नहीं हुआ.”
मम्मा ने कहा, “बेवकूफ़ लड़का! सिर्फ बहादुर
होना ही काफ़ी नहीं है, साथ में ताक़तवर भी होना पड़ता है. अकेली बहादुरी से कुछ नहीं
किया जा सकता.
तब अन्द्र्यूशा ने मम्मा की नज़र बचा कर
दादी की छड़ी ली और इस छड़ी के साथ वह आँगन में गया. सोचने लगा, ‘अब मैं हमेशा से
ज़्यादा ताक़तवर बनूंगा. अब अगर लड़के मुझ पर हमला करेंगे तो मैं उन्हें इधर उधर भगा
दूँगा.’
अन्द्र्यूशा छड़ी के साथ आँगन में निकला.
मगर आँगन में बच्चे थे ही नहीं.
वहाँ एक काला कुत्ता घूम रहा था, जिससे अन्द्र्यूशा
हमेशा डरता था. छड़ी घुमाते हुए अन्द्र्यूशा ने कुत्ते से कहा, “ अब मुझ पर भौंक कर
तो दिखा – ज़ोर की पड़ेगी. जब ये तेरे थोबड़े पर बरसेगी, तो पता चलेगा कि छड़ी क्या
होती है.” कुत्ता भौंकने लगा और अन्द्र्यूशा पर झपटने लगा. छड़ी घुमाते हुए,
अन्द्र्यूशा ने दो बार कुत्ते के सिर पर मारा, मगर उसने पीछे की ओर भागकर
अन्द्र्यूशा की पतलून थोड़ी सी फाड़ दी.
अन्द्र्यूशा रोते हुए घर भागा. और घर में,
आँसू पोंछते हुए मम्मा से कहने लगा,
“मम्मा, ऐसा कैसे हो गया? आज तो मैं बहादुर भी बना और ताक़तवर भी. मगर इससे तो कुछ भी अच्छा नहीं हुआ. कुत्ते ने मेरी पतलून फाड़ दी; वो तो मुझे काटने ही वाला था.”
“मम्मा, ऐसा कैसे हो गया? आज तो मैं बहादुर भी बना और ताक़तवर भी. मगर इससे तो कुछ भी अच्छा नहीं हुआ. कुत्ते ने मेरी पतलून फाड़ दी; वो तो मुझे काटने ही वाला था.”
मम्मा ने कहा, “आह तू, बेवकूफ़ लड़का! सिर्फ
बहादुर और ताक़तवर होना ही काफ़ी नहीं है. थोड़ी अकल भी होनी चाहिए. सोचना चाहिए, और
अन्दाज़ लगाना चाहिए. तूने तो बेवकूफ़ी कर दी. तूने छड़ी घुमाई और ऐसा करके कुत्ते को
गुस्सा दिला दिया. इसीलिए उसने तेरी पतलून फाड़ दी. तू ख़ुद ही क़ुसूरवार है.
अन्द्र्यूशा ने अपनी मम्मा से कहा,
“ अब से हर बार जब कुछ होता है, तो मैं सोचा
करूँगा,.”
अन्द्र्यूशा अब तीसरी बार घूमने निकला.
मगर आँगन में अब कुत्ता ही नहीं था. लड़के भी नहीं थे. तब अन्द्र्यूशा रीझेन्की
बाहर रास्ते पर निकला, ये देखने के लिए कि लड़के कहाँ हैं.
बच्चे तो नदी में नहा रहे थे. अन्द्र्यूशा
देखने लगा कि वे कैसे नहा रहे हैं.
इसी समय एक लड़का, सान्का पालोच्किन, पानी
में डुबकियाँ लगाने लगा और चिल्लाने लगा, “ओय, बचाओ, डूब रहा हूँ!”
और सारे लड़के डर गए कि वो डूब जायेगा, और
वे बड़े लोगों को बुलाने के लिए भागे, जिससे कि वे सान्का को बचाएँ.
अन्द्र्यूशा रीझेन्की ने चिल्लाकर सान्का
से कहा, “थोड़ा रुक जा! अभी मत डूब! मैं तुझे अभी बचाता हूँ.”
अन्द्र्यूशा पानी में छलांग लगाना चाहता
था, मगर फिर उसने सोचा, “ओय, मैं कोई ख़ास तो नहीं तैरता, और मुझमें सान्का को
बचाने लायक ताक़त भी नहीं है. मैं कुछ अकलमन्दी से काम करूँगा : मैं नाव में
बैठूंगा और तैर कर सान्का के पास जाऊँगा.”
किनारे पर ही मछली पकड़ने वाली नाव थी.
अन्द्र्यूशा ने नाव को किनारे से धकेला और उछल कर उसमें बैठ गया. नाव में चप्पू
पड़े थे. अन्द्र्यूशा ने चप्पुओं से पानी पर मारना शुरू कर दिया. मगर कुछ भी न हुआ
: उसे नाव खेना तो आता ही नहीं था. पानी का बहाव मछली पकड़ने वाली नाव को नदी के
बीचोंबीच ले गया. अब तो अन्द्र्यूशा डर के मारे चिल्लाने लगा.
इसी समय नदी में एक और नाव तैर रही थी. इस
नाव में लोग बैठे थे. इन लोगों ने सान्या पालोच्किन को बचा लिया. और, इसके अलावा,
इन लोगों ने मछली पकड़ने वाली नाव को भी पकड़ लिया और उसे अपने पीछे बांध कर किनारे
पर ले आए.
अन्द्र्यूशा घर गया और घर में, आँसू
पोंछते हुए, मम्मा से कहने लगा, “ मम्मा, आज मैं बहादुरी दिखा रहा था, मैं एक लड़के
को बचाना चाहता था. आज मैंने अकलमन्दी से भी काम लिया, क्योंकि मैं एकदम नदी में
नहीं कूदा, बल्कि नाव मैं बैठकर गया. आज मैं ताक़तवर भी था, क्योंकि मैंने भारी नाव
को धकेला और भारी भारी चप्पुओं से पानी में मारता रहा. मगर मुझ से कुछ भी न हो सका.”
मम्मा ने कहा, “ बेवकूफ़ बच्चा! मैं तो तुझे सबसे ख़ास बताना ही भूल गई. बहादुर
होना, ताक़तवर होना और अकलमन्द होना ही काफ़ी नहीं है. ये सब भी कम ही है. आदमी को
ज्ञान होना चाहिए. चप्पू चलाना आना चाहिए, तैरना आना चाहिए, घुड़सवारी करना आना
चाहिए, हवाई जहाज़ उड़ाना आना चाहिए. बहुत कुछ जानना चाहिए. अंकगणित आना चाहिए,
बीजगणित आना चाहिए, रसायन शास्त्र और ज्यॉमेट्री भी आना चाहिए. और यह सब जानने के
लिए पढ़ना चाहिए. जो पढ़ाई करता है, वो अकलमन्द हो जाता है. और जो अकलमन्द होता है,
वह बहादुर होगा ही होगा. अकलमन्द और बहादुर लोगों को सभी प्यार करते हैं, क्योंकि वे
दुश्मनों को हराते हैं, आग बुझाते हैं, लोगों को बचाते हैं और हवाई जहाज़ उड़ाते
हैं.”
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