अध्याय 13
समझ से परे
आख़िर सिर्योझा को बिस्तर से उठने की इजाज़त मिल गई, और फिर घूमने फिरने की
भी. मगर घर से दूर जाने की और पड़ोसियों के घर जाने की इजाज़त नहीं थी : डरते हैं कि
कहीं फिर उसके साथ कुछ और न हो जाए.
और सिर्योझा को सिर्फ़ दोपहर के खाने तक ही बाहर छोड़ते हैं, जब उसके दोस्त
स्कूल में होते हैं. शूरिक भी स्कूल में होता है, हाँलाकि अभी वह सात साल का नहीं
हुआ है : मात-पिता ने उसे स्कूल में डाल दिया गोदने की घटना के बाद, जिससे कि वह
ज़्यादा देर तक निगरानी में रहे और अच्छे कामों में समय बिताए...और छोटे बच्चों के
साथ सिर्योझा को अच्छा नहीं लगता.
एक बार वह बाहर आँगन में आया और उसने देखा कि रोड के पास पड़े लकड़ी के ढेर
पर कोई अनजान आदमी बैठा है लंबे कानों वाली, अजीब सी टोपी में. उस चाचा का चेहरा
ब्रश जैसा था, कपड़े फटे-पुराने थे. वह बैठे हुए बहुत ही छोटी बीड़ी पी रहा था, इतनी
छोटी कि वह पूरी की पूरी बस उसकी दो काली-पीली उँगलियों में समा गई थी; धुआँ सीधे
उँगलियों से निकल रहा था, ताज्जुब की बात यह थी कि चाचा की उँगलियाँ जल नहीं रही
थीं...दूसरा हाथ गन्दे चीथड़े में बंधा था. जूतों पर लेस के बदले रस्सियाँ थीं.
सिर्योझा ने सब कुछ देखा और पूछा:
“आप क्या कोरोस्तेल्योव के पास
आए हैं?”
“कौन कोरोस्तेल्योव?” चाचा ने
पूछा. “मैं कोरोस्तेल्योव को नहीं जानता.”
“मतलब, आप लुक्यानिच के पास आए
हैं?”
“मैं लुक्यनिच को भी नहीं
जानता.”
“और उनमें से कोई भी घर में नहीं
है,” सिर्योझा ने कहा. “सिर्फ पाशा बुआ और मैं ही घर पर हैं. और, आपको दर्द नहीं
होता?”
“दर्द क्यों होने लगा?”
“आप अपनी उँगलियाँ जला रहे हो.”
“आ!”
चाचा ने बीड़ी का आख़िरी कश लिया, छोटे से टुकड़े को ज़मीन पर फेंका और पैर
से कुचल दिया.
“और क्या दूसरा हाथ पहले ही जला
लिया है?” सिर्योझा ने पूछा.
उसके सवाल का जवाब दिए बिना चाचा ने उसकी ओर गंभीर, परेशान नज़र से देखा.
‘क्या देख रहा है ऐसे?’ सिर्योझा ने सोचा. चाचा ने पूछा, “और, तुम लोग रहते कैसे
हो? बढ़िया?”
“धन्यवाद,” सिर्योझा ने कहा,
“बढ़िया.”
“बहुत दौलत है?”
“कैसी दौलत?”
“अच्छा, क्या क्या है तुम्हारे
पास?”
“मेरे पास सैकल है,” सिर्योझा ने
कहा. “और खिलौने हैं. हर तरह के : चाभी वाले हैं, और बिना चाभी वाले भी. और
ल्योन्या के पास थोड़े से ही हैं, सिर्फ झुनझुने.”
“और कटपीस हैं?” चाचा ने पूछा.
और यह सोचकर कि शायद सिर्योझा को यह शब्द समझ में नहीं आया होगा, उसने समझाया,
“कपड़ा – समझ रहे हो? सूट के लिए, ड्रेस के लिए.”
“हमारे पास नहीं हैं कटपीस,”
सिर्योझा ने कह, “वास्का की माँ के पास हैं.”
“और वो कहाँ रहती है? वास्का की
माँ?”
मालूम नहीं यह बातचीत कहाँ पहुँचती, मगर तभी फ़ाटक की कुंडी बजी और
लुक्यानिच आँगन में आया. उसने पूछा, “कौन हो तुम? क्या चाहिए?”
चाचा लकड़ियों के ढेर से उठा और बहुत विनम्र और दयनीय हो गया.
“काम ढूँढ़ रहा हूँ, मालिक,” उसने
जवाब दिया.
“तो ऐसे घर घर क्यों घूम रहे
हो?” लुक्यानिच ने पूछा. “काम कहाँ करते हो?”
“इस समय मेरे पास कोई काम नहीं
है,” चाचा ने कहा.
“मगर, करते कहाँ थे?”
“था – और अब नहीं है. बहुत पहले
था.”
“क्या जेल से आए हो?”
“एक महीना पहले छूटा हूँ.”
“किसलिए गए थे?”
चाचा ने एक पैर से दूसरे पैर पर
शरीर का भार रखते हुए जवाब दिया, “व्यक्तिगत संपत्ति का दुरुपयोग करने के जुर्म
में. बिना किसी कारण के ही सज़ा सुना दी. कानून का खून ही था वो.”
“मगर तुम घर क्यों नहीं गए, इधर
उधर क्यों भटक रहे हो?”
“मैं गया था,” चाचा ने कहा, “मगर
बीबी ने मुझे घुसने नहीं दिया. उसने दूसरा कोई ढूँढ़ लिया : दुकान का असिस्टेंट! और
फिर वहाँ मेरा नाम भी नहीं दर्ज कर रहे हैं...अब मैं अपनी माँ के पास जा रहा हूँ.
चीता में मेरी माँ रहती है.”
सिर्योझा, मुँह थोड़ा सा खोले, सुन रहा था. चाचा जेल में था!...लोहे के
सींकचों वाली जेल में, दाढ़ीवाले पहरेदारों के साथ, जो ऊपर से नीचे तक हथियार लिए
रहते हैं, लंबे लंबे डंडे और तलवारें, जैसा कि किताबों में लिखा होता है – और कहीं
किसी चीता में उसकी माँ उसका इंतज़ार कर रही है, और, शायद, रोती है, बेचारी...उसे
बड़ी ख़ुशी होगी, जब ये उसके पास पहुँचेगा. वह इसके लिए कोट और सूट सिएगी. और जूतों
के लिए लेस भी ख़रीदेगी...
“चीता में...बिल्कुल उस छोर
पर...” लुक्यानिच ने कहा. “तो फिर क्या? कुछ कमाएगा –वमाएगा कि फिर से वही,
व्यक्तिगत संपत्ति का दुरुपयोग?...”
चाचा ने भौंहें चढ़ाईं और बोला,
“क्या आपके लिए लकड़ियाँ काट
दूँ?”
“ठीक है, काट दे,” लुक्यानिच ने
कहा और वह शेड से आरी लाया.
आवाज़ें सुनकर पाशा बुआ बाहर आई और उसने ड्योढ़ी से बातचीत सुनी. न जाने
क्यों उसने मुर्गियों को शेड में खदेड़ दिया, हालाँकि उनके सोने में अभी बहुत वक़्त
था, और ताला लगाकर उन्हें बन्द कर दिया. और चाभी अपनी जेब में रख ली. और हौले से
सिर्योझा से बोली,
“सिर्योझा, जब तक तू यहाँ घूम
रहा है, ध्यान रखना कि चाचा आरी लेकर न चला जाए.”
सिर्योझा चाचा के चारों ओर घूमता रहा और बड़ी दिलचस्पी से, शक से,
सहानुभूति से और कुछ डर से उसे देखता रहा. उसके असाधारण और रहस्यमय भाग्य के प्रति
आदर के कारण उससे बातें करने का निश्चय वह नहीं कर पाया, और चाचा भी चुप रहा. वह
दिल लगाकर लकड़ियाँ काट रहा था और केवल कभी कभी कुछ देर के लिए बैठ जाता था, बीडी
बनाकर पीने के लिए.
सिर्योझा को खाना खाने के लिए बुलाया गया. मम्मा और कोरोस्तेल्योव घर में
नहीं थे, तीनों ने ही खाना खाया. सब्ज़ियों का सूप खाने के बाद लुक्यानिच ने पाशा
बुआ से कहा, “उस चोर के बच्चे को मेरे पुराने फ़ेल्ट-बूट दे देना.”
“अभी तो तुम ही उन्हें पहन सकते
हो,” पाशा बुआ ने कहा. “उसके लेस वाले जूते अच्छे ही हैं.”
“चीता तक उन लेस वाले जूतों में
कैसे जाएगा,” लुक्यानिच ने कहा.
“मैं उसे खाना खिला दूँगी,” पाशा
बुआ ने कहा, “मेरे पास कल का काफ़ी सूप बचा है.”
खाना खाने के बाद लुक्यानिच आराम करने के लिए लेटा, और पाशा बुआ ने
मेज़पोश निकाल कर तह करके शेल्फ़ में रख दिया.
“तुमने मेज़पोश क्यों निकाला?”
सिर्योझा ने पूछा.
“बिना मेज़पोश के भी ठीक ठाक ही
है,” पाशा बुआ ने कहा, “ वह कितना गन्दा है!”
उसने सूप गरम किया, ब्रेड के स्लाईस काटे और दुखी आवाज़ में उसने चाचा को
बुलाया.
“अन्दर आईये, खा लीजिए.”
चाचा अन्दर आया और बड़ी देर तक कपड़े से पैर साफ़ करता रहा. फिर उसने हाथ
धोए, और पाशा बुआ ने डोलची से उसके हाथ पर पानी डाला. रैक में साबुन के दो टुकड़े
थे : एक गुलाबी, दूसरा सीधा सादा भूरा; चाचा ने भूरा वाला लिया – या, शायद उसे
मालूम नहीं था कि नहाते तो गुलाबी साबुन से हैं, या, फिर गुलाबी साबुन को इस्तेमाल
करने का उसे हक ही नहीं था, जैसे कि मेज़पोश का और आज के बने सूप का. और वैसे भी वह
सकुचा रहा था और बड़ी सावधानी से, अविश्वास से किचन में आया जैसे उसे डर हो कि कहीं
फ़र्श न टूट जाए. पाशा बुआ बड़ी मुस्तैदी से उस पर नज़र रखे हुए थी. मेज़ पर बैठते हुए
चाचा ने सलीब का निशान बनाया. सिर्योझा ने देखा कि पाशा बुआ को यह अच्छा लगा. उसने
प्लेट पूरी भर दी और प्यार से बोली, “ “खाईये. भरपेट खाईये.”
चाचा ने सूप खाया और ब्रेड के तीन टुकड़े चुपचाप और एकदम खा गया, अपने
जबड़े जल्दी जल्दी चलाते हुए और नाक से ज़ोर ज़ोर से साँस लेते हुए. पाशा बुआ ने उसे
और सूप दिया और वोद्का का छोटा सा गिलास भी दिया.
“अब ये पी सकते हो,” उसने कहा,
“मगर खाली पेट के लिए ये अच्छा नहीं है.”
चाचा ने गिलास उठाया और कहा, “आपकी सेहत के लिए, बुआ. भगवान आपका भला
करे.”
उसने सिर पीछे किया, मुँह खोला और ग्लास में रखी पूरी की पूरी वोद्का एक
पल में अन्दर डाल दी. सिर्योझा ने देखा – खाली ग्लास मेज़ पर रखा है.
‘शाबाश!’ सिर्योझा ने सोचा.
अब चाचा पहले जैसा गपागप नहीं खा रहा था और बातें कर रहा था. उसने बताया
कि कैसे वह अपनी पत्नी के पास गया जिसने उसे घर में घुसने नहीं दिया.
“और कुछ दिया भी नहीं,” उसने
कहा. “हमारे पास काफ़ी सामान था : सिलाई-मशीन, ग्रामोफ़ोन, बर्तन..., कुछ भी नहीं
दिया. “निकल जाओ,” कहा, “चोर कहीं के, जहाँ से आए हो, वहीं वापस जाओ, तुमने मेरी
ज़िन्दगी बर्बाद कर दी.” मैंने कहा, “कम से कम ग्रामोफ़ोन तो दो, हम दोनों ने मिलकर
ख़रीदा था.” मगर वह उसे देना नहीं चाह रही थी. मेरे सूट से अपने लिए ड्रेस बना ली.
और मेरा ओवरकोट पुरानी चीज़ों की दुकान में बेच दिया.”
“और पहले कैसे रहते थे?” पाशा
बुआ ने पूछा.
“रहते थे – अच्छी तरह रहते थे,
उससे बढ़िया हो ही नहीं सकता था,” चाचा ने जवाब दिया. “पागल की तरह प्यार करती थी
मुझसे. मगर अब उसके पास दुकान का असिस्टेंट है. मैंने देखा उसे: कुछ भी ख़ास नहीं
है उसमें. कोई चेहरा-मोहरा है ही नहीं. क्या देख कर वह रीझ गई! सिर्फ़ इस बात पर कि
वह दुकान का असिस्टेंट है. ज़ाहिर है, यही बात है.”
उसने अपनी माँ के बारे में भी बताया, कितनी पेन्शन मिलती है उसे और कैसे
उसने उसे एक पार्सल भेजा था. पाशा बुआ बिल्कुल दयालु हो गई : उसने चाचा को उबला
हुआ माँस दिया, और चाय दी और बीड़ी पीने की इजाज़त भी दी.
“बेशक,” चाचा ने कहा, “अगर मैं
माँ के पास कम से कम ग्रामोफ़ोन लेकर जाता तो बेहतर होता.”
‘ बेशक, बेहतर होता,’ सिर्योझा
ने सोचा. ‘वे दोनों रेकॉर्ड्स लगाया करते.’
“हो सकता है, कोई काम भी मिल
जाए, तो फिर ठीक रहेगा.” पाशा बुआ ने कहा.
“हम जैसों को काम पर रखना लोगों
को पसन्द नहीं आता,” चाचा ने कहा और पाशा बुआ ने गहरी साँस लेकर सिर हिलाया, जैसे
उसे चाचा से सहानुभूति हो, और उन लोगों से भी जो उसे काम पर रखना नहीं चाहते.
“हाँ,” चाचा ने कहा, कुछ देर चुप
रहने के बाद, “मैं शायद वैसा, दुकान का असिस्टेंट नहीं बनता – मगर और कुछ भी बन
सकता था; मगर मैंने यूँ ही अपना समय बेकार गँवाया.”
“ और आपने क्यों उसे बेकार गँवाया?” पाशा बुआ ने सादगी से कहा, “आप उसे
बेकार न गँवाते तो बेहतर होता.”
“अब कहने से क्या फ़ायदा,” चाचा
ने कहा, “सब कुछ हो जाने के बाद. अब किसी से कुछ कहने में कोई मतलब ही नहीं है.
अच्छा, धन्यवाद आपको, बुआ. जाऊँ, लकड़ियाँ काट दूँ.”
वह आँगन में गया. सिर्योझा को पाशा बुआ ने अब बाहर नहीं जाने दिया,
क्योंकि हल्की हल्की बारिश होने लगी थी.
“वो ऐसा क्यों है?” सिर्योझा ने
पूछा, “ये चाचा.”
“जेल में था,” पाशा बुआ ने कहा,
“तूने तो सुना ही था.”
“मगर वह जेल गया ही क्यों?”
“बुरे काम करता था, इसीलिए गया.
अगर अच्छे काम करता – तो उसे बन्द नहीं करते.”
लुक्यानिच ने खाना खाने के बाद आराम किया और वापस अपने ऑफ़िस जाने लगा.
सिर्योझा ने उससे पूछा, “अगर बुरे काम करते हैं, तो क्या जेल भेज देते हैं?”
“देखो, ऐसा है,” लुक्यानिच ने
कहा, “उसने औरों की चीज़ें चुराईं. मैंने, मिसाल के तौर पर, काम किया, पैसे कमाए,
और उसने आकर चुरा लिए : क्या ये अच्छी बात है?”
“नहीं.”
“ज़ाहिर है – ये बुरा काम है.”
“वो बुरा है?”
“ज़ाहिर है – बुरा है.”
“तो फिर तुमने उसे अपने बूट देने
को क्यों कहा?”
“मुझे उस पर दया आ गई.”
“जो बुरे होते हैं – उन पर
तुम्हें दया आती है?”
“देखो, बात ये है कि,” लुक्यानिच
ने कहा, “मुझे उस पर दया इसलिए नहीं आई, कि वह बुरा है, बल्कि इसलिए आई, कि वह
क़रीब-क़रीब नंगे पैर था. और बस ....अच्छा नहीं लगता, जब कोई बुरी हालत में होता
है...हाँ, मगर आम तौर से...मैं उसे बड़ी ख़ुशी से, ज़रूर अपने जूते दे देता, अगर वह
अच्छा इन्सान होता...मैं चला ऑफ़िस!” लुक्यानिच ने कहा और भाग गया, जल्दी जल्दी .
‘अजीब है,’ सिर्योझा ने सोचा,
‘जो वह कह रहा है उसमें से कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है.’
उसने खिड़की से हल्की भूरी बारिश की ओर देखा और लुक्यानिच के पहेली बुझाने
वाले शब्दों को सुलझाने की कोशिश करने लगा...लंबे कानों वाली टोपी पहने चाचा सड़क
से गुज़रा, बगल में जूते दबाए, एक दूसरे पर रखे हुए, इस तरह कि उनकी एड़ियाँ दोनों
ओर से बाहर आ रही थीं. मम्मा आई और लाल कंबल में लिपटे ल्योन्या को शिशु-गृह से
लाई...
“मम्मा!” सिर्योझा ने कहा.
“तुमने बताया था, याद है, कि एक लड़के ने कॉपी चुराई थी. क्या उसे जेल भेज दिया गया
था?”
“क्या, तू भी!” मम्मा ने कहा,
“बेशक, नहीं भेजा.”
“क्यों?”
“वह छोटा था. उसकी उम्र आठ साल
थी.”
“छोटे बच्चों को माफ़ है?”
“क्या माफ़ है?”
“चोरी करना.”
“नहीं, छोटों को भी चोरी नहीं
करना चाहिए,” मम्मा ने कहा, “मगर मैंने उसे समझाया, और अब वह कभी कुछ नहीं चुराता.
मगर तुम यह किसलिए पूछ रहे हो?”
सिर्योझा ने जेल वाले चाचा के बारे में बताया.
“अफ़सोस की बात है,” मम्मा ने
कहा, “कि कभी कभी ऐसे लोग होते हैं. हम इस बारे में बात करेंगे, जब तुम बड़े हो
जाओगे. प्लीज़, पाशा बुआ से रफ़ू करने की पट्टी लाकर मुझे दो.”
सिर्योझ ने पट्टी लाकर दी और पूछा,
“मगर उसने चोरी क्यों की?”
“काम नहीं करना चाहता था, इसीलिए
चोरी की.”
“और उसे मालूम था कि उसे जेल भेज
देंगे?”
“बेशक, मालूम था.”
“उसे, क्या, ज़रा भी डर नहीं लगा?
मम्मा! क्या वह डरावनी नहीं होती – जेल?”
“ओह, बस हो गय!” मम्मा को गुस्सा
आ गया. “मैंने कह दिया कि यह सब सोचने के
लिए तुम अभी बहुत छोटे हो! किसी और चीज़ के बारे में सोचो! मैं ऐसी बातें सुनना भी
नहीं चाहती!”
सिर्योझा ने उसकी चढ़ी हुई भौंहों की तरफ़ देखा और पूछना बन्द कर दिया. वह
किचन में गया, डोलची से बाल्टी में से पानी निकाला, उसे ग्लास में डाला और एकदम,
एक घूँट में पीने की कोशिश की; मगर उसने सिर को चाहे कितना ही पीछे करने की कोशिश
की और कितना ही चौड़ा मुँह क्यों न खोला – यह हुआ ही नहीं, बस वह पानी से पूरी तरह
भीग ज़रूर गया. पीछे, कॉलर के पीछे भी पानी गिरकर पीठ से बहने लगा. सिर्योझा ने यह
बात छुपा ली कि उसकी कमीज़ गीली हि, वर्ना तो वे हो-हल्ला मचाने लगते और उसके कपड़े
बदलने और डाँटने लगते. और जब तक सिर्योझा के सोने का वक़्त हुआ, कमीज़ सूख गई थी.
...बड़े लोगों ने सोचा कि वह सो
रहा है और वे डाईनिंग रूम में ज़ोर से बातचीत करने लगे.
“असल में उसे क्या चाहिए,”
कोरोस्तेल्योव ने कहा, “उसे सिर्फ़ ‘हाँ’ में या ‘ना’ में जवाब चहिए. और अगर इसके
बीच में कुछ कहा जाए तो उसे समझ में नहीं आता.”
“मैं तो भाग ही गया,” लुक्यानिच
ने कहा, “जवाब नहीं दे सका.”
“हर उम्र की अपनी अपनी कठिनाईयाँ
होती हैं,” मम्मा ने कहा, “और बच्चे के हर सवाल का जवाब देना ज़रूरी भी नहीं है.
उसके साथ उस चीज़ के बारे में बहस क्यों की जाए, जो उसकी समझ से परे है? इससे क्या
हासिल होगा? सिर्फ़ उसकी चेतना धुंधला जाएगी और ऐसे विचारों को जन्म देगी जिनके लिए
अभी वह बिल्कुल तैयार नहीं है. उसके लिए सिर्फ़ इतना जानना काफ़ी है कि इस आदमी ने
अपराध किय था और उसे सज़ा मिली. मैं आपसे विनती करती हूँ – प्लीज़, ऐसे विषय पर उसके
साथ बातें न करें!”
“क्या हम बात करते हैं?”
लुक्यानिच ने अपना पक्ष रखते हुए कहा, “वो ही बातचीत करता है!”
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