सोमवार, 8 जुलाई 2013

Professor...

प्रोफेसर शेखीमार
लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास

जब मैं पेपर पढ़ते समय पापा को तंग करता हूँ तो उन्हें अच्छा नहीं लगता. मगर मैं हमेशा इस बारे में भूल जाता हूँ, क्योंकि उनसे बात करने को मेरा जी बहुत चाहता है. आख़िर, वो मेरे इकलौते पापा हैं! मैं  हमेशा उनके साथ बातें करना चाहता हूँ.
एक बार वो बैठे हुए पेपर पढ़ रहे थे, और मम्मी मेरे जैकेट पर टोप सी रही थीं.
मैंने कहा:
 “पापा, तुम्हें मालूम है कि बायकाल लेक में कितने अज़ोव सागर समा सकते हैं?”
उन्होंने कहा:
 “डिस्टर्ब मत करो...”
 “92! अच्छा है ना?”
 “अच्छा है. डिस्टर्ब मत करो, ठीक है?”
 और वो फिर से पढ़ने लगे.
मैंने कहा:
 “क्या तुम आर्टिस्ट एल ग्रेको को जानते हो?”
उन्होंने सिर हिला दिया. मैंने कहा:
 “उसका असली नाम है दोमेनिको तियोतोकोपूली! क्योंकि वह क्रीत द्वीप का रहने वाला ग्रीक है. इसी आर्टिस्ट को स्पैनिश लोग कहते थे एल ग्रेको!...
बड़ी दिलचस्प बातें हैं. व्हेल, मिसाल के तौर पर,पापा, पाँच किलोमीटर दूर तक सुन सकती है.”
पापा ने कहा:
 “थोड़ी देर तो चुप हो जा...कम से कम पाँच मिनट...”
मगर मेरे पास तो पापा को सुनाने के लिए इत्ती सारी ख़बरें थीं कि मैं अपने आप को रोक नहीं पा रहा  था. मेरे अन्दर से ख़बरें बिखर रही थीं, एक के बाद एक उछलती हुई बाहर आ रही थीं. क्योंकि वे थीं भी तो ढेर सारी. अगर वे कुछ कम होतीं, तो हो सकता कि बर्दाश्त करना मेरे लिए आसान होता, तब मैं चुप हो जाता, मगर वे तो ख़ूब सारी थीं, और इसीलिए मैं मजबूर था.
मैंने कहा:
 “पापा! सबसे ख़ास ख़बर तो तुम्हें मालूम ही नहीं है: ग्रेट ज़ोन्द आइलैंड्स में छोटी-छोटी भैंसे रहती हैं. पापा, वे बौनी होती हैं. उन्हें केन्टूस कहते हैं. ऐसे केन्टूस को सूटकेस में बन्द करके ला सकते हैं!”
 “ओह, अच्छा?” पापा ने कहा , “बड़े अचरज की बात है! अब तू मुझे आराम से पेपर पढ़ने दे, ठीक है?”

“पढ़ो, पढ़ो,” मैंने कहा, “प्लीज़, पढ़ लो! पापा, समझ रहे हो, ऐसा लगता है कि हमारे कॉरीडोर में ऐसी भैंसों का पूरा झुण्ड चर सकता है!... हुर्रे?”
 “हुर्रे,” पापा ने कहा. “चुप रहेगा, या नहीं?”
 “और सूरज आसमान के बीचोंबीच थोड़ी ना होता है,” मैंने कहा, “बल्कि किनारे पर होता है!”
 “ऐसा हो ही नहीं सकता,” पापा ने कहा.
 “शर्त लगाता हूँ,” मैंने कहा, “वो किनारे पे होता है! एकदम किनारे पे.”
पापा ने धुँधलाई आँखों से मेरी ओर देखा. फिर उनकी आँखें साफ़ हो गईं, और उन्होंने मम्मी से कहा:
 “उसे ये सब कैसे पता चला? कहाँ से? कब?”
 मम्मी मुस्कुराईं:
 “वो मॉडर्न बच्चा है. वह पढ़ता है, रेडिओ सुनता है. टीवी. लेक्चर्स. और तुम्हें क्या लगा?”
 “वंडरफुल,” पापा ने कहा, “कितनी जल्दी सब कुछ पता चल जाता है.”
उन्होंने फिर से अख़बार के पीछे अपने आपको छुपा लिया, और मम्मी ने उनसे पूछा:
 “ इतनी दिलचस्पी से तुम क्या पढ़ रहे हो?”
 “अफ्रीका,” पापा ने कहा. “ खौल रहा है! उपनिवेशवाद का अंत!”
 “अभी अंत नहीं हुआ है!” मैंने कहा.
 “क्या?”
मैं अख़बार के नीचे से रेंग कर उनके सामने खड़ा हो गया.
 “अभी भी कई सारे गुलाम देश हैं,” मैंने कहा. “कई सारे गुलाम देश हैं.”
उन्होंने कहा, “तू बच्चा नहीं है. नहीं. तू तो प्रोफ़ेसर है! असली प्रोफ़ेसर...शेखीमार !”
और वो हँसने लगे, और मम्मी भी उनके साथ हँसने लगीं.
 “ठीक है, डेनिस, जा थोड़ी देर घूम के आ,” उसने मेरी ओर जैकेट बढ़ाया और मुझे धकेलते हुए बोली,  “जा! जा!”
मैं जाने लगा, जाते-जाते मैंने मम्मी से कॉरीडोर में पूछा :
 “मम्मी, ये प्रोफ़ेसर शेखीमार क्या होता है? पहली बार ऐसी बात सुन रहा हूँ! क्या उन्होंने मज़ाक में मुझे ‘शेखीमार’ कहा? क्या यह अपमानजनक है?”
 मगर मम्मी बोली:
 “ क्या कहता है! ये बिल्कुल अपमानजनक नहीं है. क्या पापा तेरा अपमान कर सकते हैं? बल्कि उन्होंने तो, उल्टे, तेरी तारीफ़ की थी!”
जब उन्होंने मेरी तारीफ़ की थी, तो मुझे फ़ौरन इत्मीनान हो गया, और मैं शांत होकर घूमने चल पड़ा.
मगर सीढ़ियों पर मुझे याद आया कि मुझे अल्योन्का को देखना है, सब कह रहे हैं कि वह बीमार है और     
कुछ भी नहीं खा रही है. मैं अल्योन्का के घर पहुँचा. उनके यहाँ कोई अंकल बैठे थे, नीले सूट में, हाथ  गोरे-गोरे. वे मेज़ के पास बैठकर अल्योन्का की मम्मी से बातें कर रहे थे. अल्योन्का दीवान पर लेटी थी और घोड़े का पैर चिपका रही थी. जब अल्योन्का ने मुझे देखा, वह फ़ौरन चिल्लाई:
 “डेनिस्का आया है! ओहो –हो!”
 मैंने शराफ़त से कहा:
 “हैलो! पागल की तरह चिल्ला क्यों रही है?”
और मैं दीवान पर उसके क़रीब बैठ गया.
 गोरे- गोरे हाथों वाले अंकल उठे और बोले:
 “मतलब, सब कुछ नॉर्मल है. हवा, हवा और हवा. ये तो पूरी तरह से नॉर्मल बच्ची है!”
और मैं फ़ौरन समझ गया कि ये डॉक्टर है.
अल्योन्का की मम्मी ने कहा:
 “बहुत, बहुत धन्यवाद , प्रोफेसर! बहुत, बहुत धन्यवाद, प्रोफेसर!”
और उसने उनसे हाथ मिलाया. ज़ाहिर है कि ये इतना अच्छा डॉक्टर था कि उसे सब कुछ मालूम था, और इसलिए उसे ‘प्रोफेसर’ कहते   थे.
वह अल्योन्का के पास गया और बोला:
 “बाय, बाय, अल्योन्का, जल्दी से अच्छी हो जाओ.”
वह लाल हो गई, उसने ज़ुबान बाहर निकाली, दीवार की ओर पलट गई और वहाँ से फुसफुसाई:
 “बाय-बाय...”
उसने उसके सिर पर हाथ फेरा और मेरी ओर मुड़ा:
 “और आपका क्या नाम है, यंग मैन?”
ओह, कितना अच्छा है ये: मुझे “आप” कहा!
 “ मैं डेनिस कोराब्ल्येव हूं! और आपका क्या नाम है?”
उसने मेरा हाथ अपने गोरे-गोरे, बड़े, नरम हाथ में लिया. मुझे अचरज भी हुआ कि वह कितना नरम है. बिल्कुल रेशम! और उसके पूरे बदन से इतनी साफ़, और प्यारी ख़ुशबू आ रही थी. उसने मेरा हाथ हिलाते हुए कहा:
 “ और मेरा नाम है वासिली वासिल्येविच सेर्गेयेव. प्रोफेसर.”
मैंने कहा:
 “शेखीमार? प्रोफेसर शेखीमार?”
अल्योन्का की मम्मी  हाथ नचाने लगी. और प्रोफेसर लाल हो गया और खाँसने लगा. और वे दोनों कमरे से बाहर निकल गए.
और मुझे ऐसा लगा जैसे वे नॉर्मल तरीके से नहीं निकले. जैसे भाग कर निकल गए.
मुझे ये भी लगा कि मैंने कुछ गलत बोल दिया है. मालूम नहीं, क्या बात थी.
या , हो सकता है कि “शेखीमार” – वाक़ई में अपमानजनक है, हाँ?

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