गुरुवार, 4 जुलाई 2013

Dimka and Anton

दीम्का और अन्तोन
लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास

पिछली गर्मियों में मैं अपने वोलोद्या चाचा के फार्म-हाऊस गया था. उनका घर बेहद ख़ूबसूरत है, रेल्वे स्टेशन जैसा, मगर उससे थोड़ा छोटा.
मैं वहाँ पूरे हफ़्ते रहा, और जंगल में घूमा, अलाव जलाए, और तैराकी भी की.
मगर ख़ास बात ये है कि वहाँ मेरी कुत्तों से दोस्ती हुई. वहाँ ख़ूब सारे कुत्ते थे, और सब उन्हें नाम और उपनाम से पुकारते थे. जैसे, झूच्का ब्रेद्नेव, या तूज़िक मुराशोव्स्की, या बार्बोस ईसाएन्को.
इस तरह ये जानना आसान हो जाता है कि किसे किस कुत्ते ने काटा है.
हमारे घर में रहता था कुत्ता दीम्का. उसकी पूँछ मुड़ी हुई और झबरीली थी, और पैरों में ऊनी पतलून थी.
जब मैं दीम्का की ओर देखता तो मुझे बड़ा आश्चर्य होता कि उसकी कितनी ख़ूबसूरत आँखें हैं. पीली-पीली और बेहद समझदार. मैं दीम्का को शक्कर देता, और वह हमेशा मेरी ओर देखकर पूँछ हिलाता. और, बस दो ही घर छोड़कर रहता था कुत्ता अन्तोन. वह वान्का का था. वान्का का उपनाम था दीखोव, तो अंतोन को सब लोग अन्तोन दीखोव कहते थे. इस अन्तोन के बस तीन ही टाँगें थीं, शायद चौथी टाँग को पंजा नहीं था. उसने उसे कहीं खो दिया था. मगर फिर भी वह खूब तेज़ भागता था और हर जगह पहुँच जाता था. वह घुमक्कड़ था, कभी-कभी तीन-तीन दिनों तक गायब हो जाता, मगर हमेशा वान्का के पास लौटकर आ जाता था. अन्तोन को जो भी सामने आ जाए, वो चुराना अच्छा लगता था, मगर वह चालाक नहीं था. एक बार का किस्सा सुनाता हूँ.
मेरी मम्मी ने दीम्का को एक बड़ी हड्डी दी. दीम्का ने उसे ले लिया, अपने सामने रखा, पंजों में पकड़ लिया, आँखें सिकोड़ीं और उसे कुतरने ही वाला था कि अचानक उसे हमारी बिल्ली मूर्ज़िक दिखाई दी. वह किसी को छेड़ नहीं रही थी, चुपचाप घर जा रही थी, मगर दीम्का उछला और उसके पीछे पड़ गया! मूर्ज़िक – दौड़ने लगी और दीम्का बड़ी देर तक उसे खदेड़ता रहा, जब तक कि उसे सराय के पीछे न भगा दिया.
मगर ख़ास बात ये थी कि अन्तोन कबसे हमारे आँगन में था, और जैसे ही दीम्का मूर्ज़िक के पीछे भागा, अन्तोन ने बड़े आराम से उसकी हड्डी उठाई और उसे लेकर भाग गया! हड्डी उसने कहाँ छुपाई, मालूम नहीं, मगर एक ही सेकण्ड बाद वापस आकर बैठ गया, इधर उधर देखने लगा, जैसे कह रहा हो, “लड़कों, मुझे कुछ भी मालूम नहीं है.”
अब दीम्का वापस आया तो देखता क्या है कि हड्डी नहीं है, और बस अन्तोन बैठा है. उसने उसकी ओर देखा, मानो पूछ रहा हो, “तूने ली है?” मगर जवाब में ये बदमाश उसे देखकर हँसने लगा! फिर उकतायेपन से मुड़ गया. तब दीम्का भागकर उसके आगे गया और सीधे उसकी आँखों में देखने लगा. मगर अन्तोन ने पलक तक नहीं झपकाई. दीम्का काफ़ी देर तक उसे देखता रह मगर फिर समझ गया कि उसका कोई ईमान नहीं है, और वहाँ से हट गया.
अन्तोन जैसे उसके साथ खेलना चाह रहा था, मगर दीम्का ने उससे बात करना बन्द कर दिया.
मैंने कहा, “ अन्तोन! आ-आ-आ!”
वह मेरे पास आया, और मैंने उससे कहा, “मैंने सब देखा है. अगर तुम फ़ौरन हड्डी नहीं लाए तो मैं सबसे कह दूँगा.     
वह बुरी तरह लाल हो गया. मतलब, बेशक, वो, हो सकता है, लाल हुआ भी न हो, मगर उसकी शक्ल बता रही थी कि वह बहुत शर्मिन्दा है, और वह सही में लाल हो गया.
ओह, कितना होशियार! अपनी तीन टाँगों से उछलता हुआ वह कहीं गया, और वापस आया तो उसने दाँतों में हड्डी दबाई हुई थी. और हौले से, शराफ़त से, उसे दीम्का की सामने रख दिया. मगर दीम्का उसे खा ही नहीं रहा था. उसने अपनी पीली आँखों से कनखियों से देखा और मुस्कुराया – मतलब, माफ़ कर दिया!
और वे खेलने लगे, भाग-दौड़ करने लगे, और फिर, जब थक गए तो नदी की ओर भागे एक दूसरे से बिल्कुल सटे-सटे.
मानो हाथ में हाथ लिए चल रहे हों.

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