दूध का दाँत
लेखक: डैनियल
चार्म्स
अनुवाद: आ. चारुमति
रामदास
एक छोटी सी बच्ची का दूध का दाँत सड़ने लगा
था.
ये तय किया गया कि इस बच्ची को दाँतों के
डॉक्टर के पास ले जाएँगे जिससे वह उसका दूध का दाँत उख़ाड़ दे.
एक बार ये बच्ची संपादकीय दफ़्तर में खड़ी
थी; वो एक शेल्फ़ के पास खड़ी दर्द से दुहरी हुई जा रही थी.
तब एक संपादिका ने बच्ची से पूछा कि वह ऐसी
दुहरी क्यों हुई जा रही है, तो बच्ची ने जवाब दिया कि वह ऐसी इसलिए खड़ी है क्योंकि
वह अपना दूध का दाँत निकलवाने से डर रही है, इसमें उसे बहुत दर्द होने वाला है.
और संपादिका ने पूछा:
“
अगर तेरे हाथ में कोई पिन चुभाई जाए तो क्या तुझे बहुत डर लगेगा?”
बच्ची ने कहा:
“नहीं.”
संपादिका ने बच्ची के हाथ में पिन चुभाई
और कहा कि दूध का दाँत निकालने में इस चुभन से ज़्यादा दर्द नहीं होता.
बच्ची ने विश्वास कर लिया और अपना बीमार
दाँत उखड़वा लिया.
इस संपादिका की सूझ बूझ की तारीफ़ करनी पड़ेगी!
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