रविवार, 14 जुलाई 2013

Two very short stories


बहादुर साही
लेखक: डैनियल चार्म्स
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास

मेज़ पर रखा था बक्सा.
जानवर बक्से के पास आए, उसे चारों तरफ़ से देखने लगे, सूंघने लगे, चाटने लगे.
और बक्सा तो अचानक ---- एक, दो, तीन----और खुल गया.
और बक्से से ---एक, दो, तीन--- उछला साँप.
डर गए जानवर और भागे इधर उधर.
सिर्फ एक साही ही था, जो नहीं घबराया, झपटा साँप पर और ---एक दो तीन --- टुकड़े टुकड़े कर दिए साही ने.
और फिर बैठ गया बक्से पर और चिल्लाया: “कुकडूँ कू!”
नहीं, ऐसे नहीं! साही चिल्लाया “ आव-आवाव !”
नहीं, ऐसे भी नहीं! सही चिल्लाया: “म्याँऊ – म्याऊँ म्याँऊ!”
नहीं, अभी भी ऐसे नहीं! मुझे भी नहीं मालूम कि कैसे.
कौन जानता है कि साही कैसे चिल्लाता है?
   
कॉडलिवर ऑइल
लेखक: डैनियल चार्म्स
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास

एक बच्चे से हमने पूछा:
 “सुन, वोवा, तू ये कॉडलिवर ऑइल कैसे पी सकता है? उसका स्वाद तो इतना बुरा होता है.”
 “मगर जब मैं एक चम्मच कॉडलिवर ऑइल पीता हूँ , तो मम्मा मुझे हर बार एक कोपेक देती है,” वोवा ने कहा.
 “तू उस कोपेक का क्या करता है?” हमने वोव्का से पूछा.
 “मैं उसे अपनी गुल्लक में डाल देता हूँ,” वोवा ने कहा.
 “फिर, उसके बाद क्या होता है ?” हमने वोवा से पूछा.
 “ फिर जब मेरी गुल्लक में दो रूबल्स जमा हो जाते हैं,” वोवा ने कहा, “तो मम्मा उन्हें गुल्लक में से निकालती है और फिर से मेरे लिए कॉडलिवर ऑइल की शीशी खरीदती है.”

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